अनुवाद: डॉ. विकास दवे

मेरा अभी भी विश्वास है की कोई भी धर्म घृणा और हिंसा की शिक्षा नहीं देता है| मेरा यह भी विश्वास है की अगर कोई अपने आप को दैव-दूत घोषित करता है तो वह कभी भी घृणा और हिंसा का उपदेश तो कतई नहीं देगा| मेरा यह भी मानना है की लगभग सभी धर्मों में आपको उन्माँदी मिल जाएंगे जो की धार्मिक भावनाओं की आढ़   में अपने आप को दूसरों से अधिक बताने की चाहत में कुछ भी कर गुजरने को तत्पर होते हैं| यह सब बड़ा ही तर्कहीन और चिंताजनक है|

पिछले कुछ वर्षों में बिना किसी कारण से जातीय दंगों में वृद्धि इस बात की पुष्टि करती है की हम बहुत तेजी से प्रथकता-वादी समाज की ओर बढ़ रहे हैं| ऐसा लगता है की जैसे हर जाती , प्रजाति और धर्म के कुछ लोगों ने दूसरों के प्रति घृणा का छोटा-मोटा कारखाना खोल रखा है| कुछ लोग खुले-आम शोरगुल मचा कर यह सब करते हैं और कुछ लोग इसमें महारत नहीं रखते| पर कुल मिलाकर लगभग नगण्य कारणों से एक दुसरे के प्रति घृणा का एक बड़ा माहौल अवश्य है जो की समझ से परे है| आज हम जिस स्थिति में है उसके लिए हर धर्म और उसके संरक्षक इन सबके पीछे के कारणों के अनुपात में जिम्मेदार है| हर धर्म में कुछ धूर्तों का जमावड़ा है जो की समय-समय पर कहीं से भी हिंसा के कारण ढूंढ ही लेते है| हर धर्म में कुछ ढोंगी मिल जायेंगे जो की धर्म की आड़ में पूरे विश्व में घृणा फैला रहे हैं| हर धर्म में आपको कुछ अधम मिल जायेंगे जो किसी भी धर्म के मूल सिद्धांत जैसे की शान्ति, भाई-चारा और जीवन के प्रति आदर को कभी के भूल चुके हैं|

तो फिर धार्मिक उन्माँद के इस शोरगुल में इस समाज के समझदार लोगों को क्या करना चाहिये? क्या हमें चुप-चाप बैठ कर देखते रहना चाहिये या फिर सामाजिक शान्ति के लिए अपनी आवाज़ उठाना चाहिए जिससे की यह गन्दगी आने वाली पीढ़ियों तक जाये| विकल्प बहुत ही साफ़ है और गलत विकल्प चुनने के परिणाम आने वाली पीढ़ी के लिए भयावह होंगे| तो फिर जो काम करना है वह भी बहुत ही साफ़ है| और उसके क्रियान्वयन में की गयी कोई भी देरी से निःसंदेह हम इस समाज को एक ऐसी स्थिति में ले जाकर खड़ा कर देगें की जहाँ से सुधार असंभव होगा| तो फिर वक्त की मांग यही है की इससे पहले की घृणा के ये काले बादल पूरी मानव सभ्यता को ढांक दे, इस परिस्थिति से दो-दो हाथ कर उसे सुधार दिया जाए|

ऐसे किसी भी काम में सबसे पहले तो हमें कुछ तथ्यों को निर्भीकता से स्वीकारना होगा| आप सही तभी हो सकते हैं जब आपको पता है की गलत क्या है| सबसे अधिक घृणा फैलाने वालों से लेकर घटते क्रम में एक सूची बनानी होगी और उसी के अनुसार उन लोगों पर कार्यवाही करनी होगी| यहाँ हमें कुछ निर्भीक कदम उठाने होंगें| और सबसे पहले इस मानसिकता से उभरना होगा की आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता है”| मेरी बहुत समय से यह मान्यता है की आज हम जो अर्थहीन धार्मिक उन्माँद सिर्फ देख ही नहीं रहे हैं अपितु सहन भी कर रहे हैं उसकी जड़ हमारी यही सोच और मानसिकता है| अगर आप आँखें खोल कर गौर करें और इन घृणा फैलाने वालों की गिनती करें तो आपको उत्तर मिल जाएगा|

यह कहना कतई आपत्तिजनक होगा की पुरे विश्व में दो-तिहाई आतंकवादी घटनाओं की योजना बनाने और उसे अंजाम देने में एक धर्म विशेष के लोग होते हैं| कुछ लोग जो की अपने आप को सभी की नज़रों में अच्छा दिखाना चाहते हैं उन्हें शायद यह बेहूदा लगे पर अच्छा दिखाने का यह तो मतलब नहीं की गलत मान्यताओं की पुष्टि करना| अगर हम इस विश्व में कुछ विवेक लाना चाहते हैं तो इस तथ्य को स्वीकारना अति आवश्यक है और वह भी बहुत जल्दी| तथ्यों की स्वीकारोक्ति में ही समाधान की कुंजी होती है| एक आम धारणा के अनुसार समाधान ढूँढने से पहले मूल समस्या को जानना जरूरी है| और मूल समस्या एक धर्मं विशेष की मानसिकता में है या कम से कम इसको मानने वाले अधिकतर लोगों में| बिल्कुल इसी चीज़ को सबसे पहले ठीक करने की आवश्यकता है की हमारी तथाकथित बुद्धिमत्ता का निरर्थक ढोल पीटने की|

एक बात है, अगर कोई हमारे  देवी-देवताओं के बारे में कोई दूसरे देश में आपत्तिजनक फिल्म बनाता है तो हममें से कितने लोग अपमानित महसूस करेंगें? कतई बुद्धिमत्ता की आवश्यकता नहीं है| इस प्रश्न का एक इमानदार उत्तर बहुत सारी आशंकाओं को समाप्त कर देगा| अब दूसरी बात, अगर हम अपमानित महसूस भी करें तो हममें से कितने लोग सड़क पर उतर जाएंगे और दूसरे धर्मं के मानने वाले को जिसे भी देखा उसे बदले की भावना से मार डालेंगे मैं दावे के साथ कह सकता हूँ की कुछ ख़ास नहीं| पर आश्चर्यजनक रूप से एक धर्म विशेष में ऐसा हर दूसरे दिन करने वाले बहुतायत में मिल जायेंगे| कोई एकाध घटना को नज़रंदाज़ किया जा सकता है लेकिन अगर ऐसा बारबार होता है तो कतई नहीं| किसी भी सभ्य समाज में इसका कोई स्थान नहीं है| और तब जब की हिंसा का कारण अगर कुछ मनमाने निष्कर्ष और सहनशीलता का अभाव हो तो कोई भी सभ्य समाज इसे कभी स्वीकार नहीं करेगा| क्या आप हर समय  किसी दूसरे धर्म को आपके धर्मं के प्रति षडयंत्र की आशंका से देख सकते हैं? अगर आपकी मानसिकता यही है की सारा विश्व हर क्षण आपके धर्मं के विरूद्ध षड़यंत्र में लगा है तो बेहतर होगा की इसका मानसिक इलाज करवाएं की हिंसा का मार्ग अपनाएं| मैं अभी तक यह समझ नहीं पा रहा हूँ की हज़ारों मील दूर बैठे  किसी एक आदमी के अपनी व्यक्तिगत सोच को लेकर फिल्म बनाने से एक पूरे धर्म का अपमान किस तरह हो गया| यह सिर्फ सहनशीलता की कमी है और समर्थन करने के बजाय इसका कठोरता से दमन करना चाहिए क्योकि बाकी का सारा विश्व शान्ति चाहता है| अगर आपको यही ठीक लगता है तो अपनी इस लड़ाई को कहीं और ले जाकर लड़ो की सारे संसार को सर पर उठा लो| अगर आप हर किसी छोटी-मोटी बात को लेकर अपमानित महसूस करते हैं क्योंकि आपके धर्म ने आपको सहिष्णुता नहीं सिखाई तो सारा विश्व क्यों इसका खामियाज़ा भरे? अगर किसी ने आपके धर्म या धर्म के मसीहा को अपमानित किया है तो भी सभ्य समाज में आपको कोई अधिकार नहीं की आप भीड़ जूटा कर अपनी घृणा दिखाते हुए मार-काट मचा दें| एक धर्म का सच्चा मसीहा कब से इतनी आसानी से अपमानित होने लगा और अगर हुआ भी तो यह कौन सा हिंसा का कारण हुआ? मेरा मतलब यह है की शांति के मसीहा के नाम पर निरपराध लोगों की जान लेने का क्या तर्क है

कहीं तो एक सीमा रेखा होनी ही चाहिए| ईतनी घृणा? ये किताबों पर पाबंदी से लेकर किसी के नाम पर फतवा जारी करने का काम बड़ी ही आसानी से कर देते हैं| विश्व समुदाय इनकी इस मुर्खता को आसानी से नज़रंदाज़ नहीं कर सकता है| इनको बात-बात में परेशानी हो और फिर अपनी चिढ़ दिखाने के लिए ये मार-काट मचाना चालु कर दें| और बड़े आश्चर्य की बात है की इनमें से कई लोग इन हत्याओं को एक धार्मिक काम मानते हैं| इन्हें यह समझ लेना चाहिए की यह जघन्य कृत्य कोई धार्मिक काम नहीं है बल्कि दंडनीय अपराध है जिसकी कड़ी से कड़ी सज़ा मिलना चाहिए जिससे की बाकी लोग शांति से जी सके| हमारे विरुद्द काफी जहर उगला जा चूका है क्योंकी ये कुछ लोग अपनी सदियों पुरानी मानसिकता से उबरना नहीं चाहते हैं| अब हम और सहन नहीं कर सकते| अगर उन्हें हर छोटी मोटी बात से कष्ट होता है तो हमें भी इन जैसे लोगों के द्वारा माहौल खराब करने से कष्ट होता है|

तथ्यों को तोड़ना-मरोड़ना और बहलाना-फुसलाना बहुत हो चुका| उन्माँदीयों के लिए अब और दया की कोई गुंजाइश नहीं है| जैसे को तैसा कहावत बिलकुल ठीक  काम करती है और इसे सिद्ध करने के लिए इससे बढ़िया मौका और कुछ नहीं हो सकता है| अगर इसके लिए कुछ कठोर कदम उठाना पड़े तो भी ठीक है| कम से कम लड़ाई निर्णायक और बेहतर कल के लिए होगी जहाँ इन अधमों का कोई स्थान नहीं होगा| बहुत- बहुत धन्यवाद|

पुनः : मैं स्वयं भी एक हिन्दू हूँ और अगर कोई हिन्दू संगठन घृणा और हिंसा का समर्थन करता है तो मैं उसका भी भरपूर विरोध करता हूँ चाहे वह हिंसा कितनी ही सुक्ष्म क्यों हो और वह संगठन कितना ही विराट क्यों हो |