मुझे बड़ा आश्चर्य है और चिढ़ भी| जब सोचता हूँ की एक ओर तो
हम अपनी लोकतान्त्रिक व्यवस्था की दुहाई देते हैं और दूसरी ओर हमारे कार्य और
गतिविधियाँ किसी भी दृष्टिकोण से लोकतान्त्रिक नहीं लगती है| अपनी सुवीधानुसार हम
बारबार बयानबाजी करते है और बड़ी आसानी से भूल जाते है की लोकतांत्रिक व्यवस्था
में जनता को निर्णय लेने का अधिकार है न की किसी पार्टी को या कुछ लोगो के समूह को
या फिर किसी व्यक्ति विशेष को| इस पूर्वाग्रह का सबसे ज्वलंत उदहारण एक व्यक्ति
विशेष श्री नरेन्द्र मोदी और उनके २०१४ में प्रधान मंत्री पद को लेकर की जाने वाली
संभावनाओं को लेकर है| अगर मैं कहता हूँ की ‘हम’ तो मेरा तात्पर्य पूरे देश से
नहीं बल्कि कुछ स्वयंभू-नेक लोगों से है जो की अपने आप बारबार हमारे संविधान और
तथाकथित धर्मनिरपेक्ष ढाँचे की रक्षा करने का बीड़ा उठा लते है|
सबसे पहला सवाल तो यही उठता है की सरकार कौन बनता है? जवाब
है की ‘हम इस देश की जनता’| तो सबसे पहला निवेदन यही है की – फिर जनता को ही
निर्णय लेने दीजिये| तो फिर क्यों कर जनता की ओर से राजनेता और राजनैतिक दल अपना
निर्णय पहले से ही लेने की कोशिश कर रहे हैं? तो फिर क्यों कुछ अति उत्साही
मनोवृत्ति वाले लोग अपना ही दृढ़-विशवास लोगों पर थोपने की कोशिश कर रहे हैं? क्या
देश की जनता यह निर्णय नहीं कर सकती है की क्या वे श्री नरेन्द्र मोदी देश के अगले
प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं? क्यों फिर कांग्रेस का एक पूरा विभाग
बिकाऊ मीडिया और कुछ तथाकथित समाजसेवी संस्थाओं की मदद से अपनी अनैतिक और मनगढ़ंत
विचारधारा को जनमानस पर थोपने के लिए सारी ताकत के साथ झोंकने पर तुला है? तो
क्यों श्री नरेन्द्र मोदी की छवि बिगाड़ने का ठेका कांग्रेस में बैठे इतने सारे
राजनेताओं ने अपने राजनैतिक जीवन का प्रमुख पेशा बना लिया है? जानबूझकर क्यों
सच्चाई को जूठ के पुलिंदों के ईतने नीचे दबाया जा रहा है की आम जनता के लिए उसे
ढूँढना लगभग असंभव हो जाए? सीधे सादे शब्दों में यह ढोंग और पाखंड क्यों?
एक बात समझना जरूरी है| साल २००२ के दंगों के बाद श्री
नरेन्द्र मोदी की छवि हर तरह से बिगाड़ने
के एक मात्र उद्देश्य के लिए कांग्रेस ने कई लोगों को मानो रोजगार पर लगा रखा है|
उन्हें अमानवीय साबित करने लिए “ मौत का सौदागर” या फिर “बचर ऑफ़ गांधीनगर” (
“गांधीनगर का कसाईं”) की संज्ञा से ‘अलंकृत’ किया गया? अपने प्रदेश के लिए
उन्होंने जो भी अच्छा किया ( राष्ट्रीय स्तर से कहीं बहुत अधिक) उसे आसानी से दबा
दिया और एक समुदाय विशेष की घृणा का प्रतिक बना कर उभार दिया| समय बितते वे किसी
भी विषय में और लगभग हर विषय में कांग्रेस के सबसे पसंदीदा शिकार बन गये| चाहे वह हमारी दयनीय अर्थ-व्यवस्था हो या
स्वदेशी तकनीक से निर्मित ‘क्रयोगेनिक ईंजिन’ के असफल होने का रोना; दोष का भाँडा
अगर फूटेगा तो वह सिर्फ मोदी के मत्थे पर|
यह सब एक सोची समझी रणनीति के तहत किया गया जिससे की राहुल
गाँधी जैसे लोगों को एक उत्साही और विवेकपूर्ण नेता का सामना न करना पड़े| विरोधी खेमे में
बैठे कांग्रेस के चापलूस इस ख़याल मात्र से डरे हुए हैं की उनके चहेते राजकुमार को
एक ऐसे नेता से दो-दो हाथ करना पड़ सकता है जो देश को चलाने के लिए हर तरह से योग्य
है| पर चूँकि श्री मोदी जी की उपलब्धियां ईतनी विशाल है की उन्हें दबाना नामुमकिन
है इसलिए इन चापलूसों के पास उनकी छवि बिगड़ने के लिए हर मंच पर झूठ के पुलिंदों
के पहाड़ लगाने के सिवा कोई चारा नहीं बचा| तथाकथित दंगा पीड़ितों के समर्थन में
कांग्रेस की सभी रुदालियाँ का अपनी तथाकथित धर्मनिर्पेक्षता के घडियाली आँसू हर
संभव जगह पर बहाने लगी| श्री नरेन्द्र मोदी की छवि को एक भयावह राक्षस के रूप में
प्रस्तुत किया और लोगों को यह विश्वास दिलाने की कोशिश की गयी की, सोचिये अगर एक
दिन यह व्यक्ति इस देश का प्रधानमंत्री बनता है तो देश पर कैसी आपदा आ जायेगी|
गुजरात दंगा पीड़ितों के समर्थन में चिल्लाते-चिल्लाते यह चापलूस १९८४ मैं सिखों पर
की गयी अपनी बर्बरक करतूत को भूल गये| कुल मिलकर मोदी की धुनाई करना बहुतेरों का एक
शौक बन गया| न सिर्फ मोदी बल्कि पूरी भाजपा की छवि को धूमिल किया जिससे की आम आदमी
के मन में उस भाजपा के प्रति एक गलत धारणा बन जाये जिसने हमें अपने शासनकाल १९९८
से २००४ के बीच वास्तविक प्रगति की राह दिखायी ( सिर्फ कागजों पर नहीं)| उनके इस नीच
काम में बिकाऊ मीडिया का विशेष योगदान उल्लेखनीय होगा जिसने भाजपा और नरेन्द्र
मोदी के विरोध में जहर उगलने में कोई कसर नहीं छोड़ी| मीडिया जगत के दिग्गजों
राजदीप सरदेसाई और बरखा दत्त ने गुजरात की आग जलाते रहने के लिए दिन रात की मेहनत
और लगन से उनपर कुंठीत मानसिकता से ग्रसित विशेष कार्यक्रम जैसे की ‘वि द पीपल’
‘फेस द नेशन’ और कई वृत्तचित्र बनाये जिनका मूल उद्धेश्य झूठ और सिर्फ बड़े झूठ
उगलना था|
मैंने इस भ्रामक प्रचार को ‘जैसा की ये अधम हमें विश्वास
दिलाना चाहते हैं’ को बदलने का कोई बीड़ा नहीं उठाया है, और न ही मेरा यह कोई काम
है क्योंकि मुझे भाजपा या नरेन्द्र मोदी ने अपना जन-संपर्क अधिकारी नहीं नियुक्त
किया है| में तो यहाँ सिर्फ कुछ उन तथ्यों को उजागर करना चाहता हूँ जिन्हें की ये
बडबोले हर समय नजरअंदाज करते आये हैं| मेरे
लिए तो तथ्य ही हमेशा षड्यंत्रकारियों को काटने का एकमात्र हथियार है| चलिए, वर्ष
२०११ – १२ की उस एक सूचि पर नजर डालते हैं जो की राज्यों को उनकी प्रगति एवं
प्रशासन के क्रम में दिखाती है (यह सूचि मैंने , आपने या भाजपा ने नहीं बनायीं है
बल्कि सरकारी संस्थाओं द्वारा बनायी गयी है)
१. बिहार
२. गुजरात
३. ओडिशा
४. छत्तीसगढ़
५. दिल्ली
६. मध्य प्रदेश
दिल्ली को छोड़कर बाकी सभी राज्य या तो भाजपा शासित है या
वहां भाजपा गठबंधन की सरकार है| अगर किसी को ओडिशा के नाम पर शिकायत है तो वह ये जान
ले की वहां कुछ समय पहले तक भाजपा की गठबंधन सरकार थी| इसमें सबसे उभर कर जो नाम
आता है वो है गुजरात, जो की पिछले सात वर्षों में पहली बार गिरकर दूसरे क्रमांक पर
आया है| जब हम गुजरात के बारे में चर्चा करते हैं तो इस तथ्य को कोई क्यों उजागर
नहीं करता है? क्या गुजरात सिर्फ २००२ के बारे में है? २००२ की लीक से हटने में
हमारी कितनी ही चापलूसी क्यों न आड़े आती हो, फिर भी कारण क्या है? उस शर्मनाक
हादसे के लिए मोदी पर ही दोषारोपण क्यों?
क्या किसी न्यायालय ने उन्हें आजतक दोषी ठराया है? क्या
किसी वैधानिक संस्था ( law enforcing agency) ने ऐसा कोई सबूत पाया जैसा की
कांग्रेस ओर उसके चमचे यह भोंपू एक दशक से निरंतर बजा रहे है? और कृपया.....माया कोडनानी को बीच में मत लाना| यह मोदी का
दंगो से सम्बन्ध कतई सिद्ध नहीं करता है| अगर ऐसा है तो मोदी का उतने ही दंगों से
संबंध है, जितना की भारत-रत्न राजीव गाँधी का १९८४ के सिख दंगों में; मनमोहन सिंह का
२ जी, CWG या कोयला घोटाला में| तो फिर मोदी वध ही क्यों? चूँकि हमें “ पहले आओ पहले पाओ” की नीति से वैसे भी इतना प्यार है ( यहाँ तक की
मृत्युदंड पाए अपराधी के क्षमा प्रार्थना पत्र में भी) तो सबसे पहले जिसने भविष्य
को तक पर रख कर अपनी स्वार्थ-परत नीतियां बनाकर देश को इस कगार पर लाकर खड़ा कर
दिया ऐसे चाचा नेहरू से क्यों न शुरुवात करें? अगर हमने देश को क्षति पहुँचाने
वालों को कठघरे में रखने का बीड़ा उठाया हैं तो मोदी से उसकी शुरूआत नहीं हो बल्कि
किसी ओर से हो|
कृपया मुझे कृपया मुझे ईस बात से शरू करने के लिए मजबूर मत
कीजिये की कोर्पोरेट जगत एक प्रशासक के रूप में नरेन्द्र मोदी के बारे में क्या
सोचता है| मोदी के प्रति जो आदर की भावना रतन टाटा , सुनील भारती मित्तल या फिर
नारायण मूर्थी रखते है उसके लेश मात्र ख़याल से कांग्रेसी जिसे देश के भावी
प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहते है उसे दस्त लग जाते है| छवि बिगाड़ने से
हीरे की असली चमक कभी कम नहीं होती है| तथ्य इतने प्रत्यक्ष है की षड्यंत्रकारीयों
के लाख चिल्लाने पर भी लोगों की निगाहों से बहुत देर तक छुपे नहीं रहेंगे| वह दिन
दूर नहीं जब जनता देश के सबसे महत्वपूर्ण पद के लिए सही व्यक्ति का चुनाव करेगी,
वह व्यक्ति जो देश की प्रगति के लिए काम करेगा, अपनी प्रतिक्रिया देगा ( मौन नहीं
रहेगा!) और कठोर निर्णय लेने में स्वयं सक्षम होगा न की ऊपर से आदेश की प्रतीक्षा
करेगा|
और चलते चलते भाजपा को एक
सुझाव, उन दलों को जो की सोचते हैं कि ‘तथाकथित धर्मनिरपेक्षता ही चुनाव जिता सकती
है’ उन्हें भाड़ में जाने दें| अच्छे काम का अच्छा फल हमेशा मिलता है| बिना किसी
संदेह के श्री नरेन्द्र मोदी को २०१४ आम चुनाव के लिए प्रधानमन्त्री पद प्रत्याशी
घोषित करे| कुछ दल अगर NDA छोड़ते भी हैं तो मेरा सोचना है की BJP को उन दलों के
सहयोग की आवश्यकता नहीं, क्योंकि अंत में शायद यह एक व्यक्ति ही उन्हें संसद में
बहुमत दिलाने के लिए काफी होगा| ॐ शांति!!