अनुवाद: डा. विकास दवे

नयी नयी प्रजातियों के प्राणीयों की पहचान मेरा शौक रहा है और मुझे इसमें विशेषज्ञता प्राप्त है| यह विशेषज्ञता बहूत समय तक इन प्रजातियों के बारीक अध्ययन से आती है| इनकी आदतें, इनका किसी  विशेष परिस्थिति में हाव-भाव और अपने सीमित परिवेश के प्रति इनके दृष्टिकोण का अध्ययन इन्हें ढूँढने में बहूत सहायक होता है| हालाँकि कुछ प्रजातियाँ जैसे की गिरगीट को ढूँढना बड़ा दुष्कर होता है क्योंकि यह अपने परिवेश को देखकर अपना रंग बदलने की कला में पारंगत होते है| इन गीरगीटों को चिन्हित करने के लिए बहुत ही अभ्यस्त आँखों की आवश्यकता होती है क्योंकि सामान्यतया ये एक निर्जीव पत्थर की तरह दिखते हैं लेकिन वास्तविकता में वे किसी निरीह प्राणी पर हमले के लिए घात लगाए बैठे होते है| एक दशक से अधिक परिश्रम के बाद मेरी आँखें इन्हें घने जंगलों में भी तुरंत पहचानने की अभ्यस्त हुई तो मुझे लगा की मैंने विशेषज्ञता की चरम सीमा छू ली है| लेकिन जबसे मझे ‘सेक्यूलर’ नाम की एक अन्य प्रजाति के गीरगीट से भी अधिक शातीर होने का प्रमाण मिला है तो मैंने अपना पूरा जोर इन्हें पहचानने में लगा दिया|

मैं पिछले १० वर्षों से इन्हें पहचानने में सिध्धहस्त होने की कोशिश कर रहा हूँ लेकिन इनके गीरगीट को भी मात देते नित नए बदलते तौर तरीके एक बड़ी चुनौती उभरकर सामने आये है| बावजूद इस चुनौती के मैंने इन सेकुलर्स में कुछ नियमिततायें देखी है| मुझे नहीं पता की मेरा यह लेख मेरे पाठकों को सेक्यूलर्स को पहचानने में कितना कारगर साबित होगा लेकिन फिर भी मैं अपने एक दशक का इस भयावह प्रजाति के प्राणियों की पहचान करने के अनुभव का निचोड़ प्रस्तुत कर रहा हूँ|

तो भारतीय सन्दर्भ में सेक्यूलर कौन है? इस देश में एक डाक्टर, इंजिनियर, चार्टर्ड अकाउंटेंट, कोलेज से निष्कासित छात्र, राजनेता, SUV में घूमता पत्रकार, कोई NGO का पदाधिकारी, eNREGA से आर्थिक मदद प्राप्त Twitter Handle, अथवा कोई भी बेकार जिसे सिर्फ सेक्यूलर बनना है, वह सेक्यूलर हो सकता है| इन सेक्यूलर्स के हिन्दू होने की संभावना अधिक होती है| इनके नमूने जो दूसरे धर्मानुयायी होते है वे आपको सेक्यूलर होने का अहसास दिला सकते है लेकिन वास्तविकता में होते नहीं है| यह उप-प्रजाति अपनी ‘सुविधानुसार’ सेक्यूलर ( Secular of Convenience ) होती है| यह उप-प्रजाति के होने के बावजूद पहचानने में थोड़े आसान होती है| पहचान, आप कितना बारीकी से उन्हें सुनते है, उस पर निर्भर होती है| इनको अक्षरश: सुनना इनकी पहचान के लिए अत्यंत आवश्यक है| सामान्यतया सेक्यूलार्सिम इनके लिए अपने धर्म तक ही सीमित होता है| शायद यह इससे सहमत न हो लेकिन अगर रातों रात दुनिया से दूसरे सभी धर्मों का सफाया हो जाये तो इन्हें बड़ी ख़ुशी होगी| यह कामना इनके चेहरे पर इस कदर छलकती है की इससे इन्हें पहचानना बड़ा सरल हो जाता है| फिर भी इन्हें अक्षरश: सुनना अत्यंत अनिवार्य है| यहाँ पर जावेद अख्तर जैसे लोगों की परिकल्पना से पहचान आसान की जा सकती है|

पर चलिए हम उप-प्रजाति को छोड़ अपने मूल विषय ‘सेक्यूलर’ प्रजाति की पहचान पर आते है| इनकी नाक एक बड़ी पहचान होती है| ऐसा नहीं की इनकी नाक सामान्य मानव प्रजाति से अलग होती है लेकिन जैसे ही आप ‘हिन्दू’ शब्द का प्रयोग करें, ठीक उसी समय इनकी नाक का अध्ययन अत्यंत आवश्यक है| अगर आपको संदेह है तो आप इनके सामने ‘हिन्दू’ या हिन्दू संगठन जैसे की  RSS शब्द का उच्चारण करें और आप पायेंगें की इनकी नाक टेढ़ी हो जाती है और नथूने इस कदर फूल जाते है की इनने अभी-अभी कोई बदबूदार चीज सूंघ ली है| यह नाक फिर अपने वास्तविक स्वरुप में तभी आती है जब तक की इन्हें विशवास न हो जाए की कहीं दूर-दूर तक ‘हिन्दू’ या ‘हिंदुत्व’ शब्द का उच्चारण नहीं हो रहा है| अगर आप इन्हें हिन्दू पायें और इनके मन में ‘हिन्दू’ शब्द से इतनी घृणा देखें तो इसमें आश्चर्यचकित होने की आवश्यकता नहीं है| मेरी पहली बात स्मरण रहे की साधारणतया सेक्यूलर हिन्दू ही होते है| तो 97 प्रतिशत संभावना है की आपकी रोजमर्रा की जिन्दगी में जब-तब आपको सेक्यूलर मिलेगा कह हिन्दू होगा|

चलिए आगे बढ़ते है| एक दशक से पहले टेढ़ी नाक सेक्यूलर होने का  प्रमाण अवश्य थी पर उसमें थोडा बदलाव आ गया है| में टेढ़ी नाक के  बदलाव के बारे में बात नहीं कर रहा हूँ बल्कि उसमें टेढ़ापन आने के कारणों में बदलाव की बात कर रहा हूँ| पहले नाक में टेढ़ापन अथवा की नथूने फूलना ‘हिन्दू’ अथवा हिन्दू सम्बंधित कुछ शब्दों के उच्चारण का परिणाम था लेकिन अब यह सिध्ध हा गया है की वैसा ही टेढापन और नथूने फूलना एक नए शब्द ‘नरेन्द्र मोदी’ के उच्चारण से भी एक सेकुलर की नाक में आता है| इस नए शब्द के कारण तो एक सेक्यूलर की नाक 180 डिग्री तक मुड जाती है नथूने गुफा की तरह फूल जाते है और तो और इनकी आँखें भेंगी हो जाती है| इसका एक बड़ा फायदा यह हुआ है की इससे इन सेक्यूलरों की पहचान आसान हो गयी है जो की एक ‘सेक्यूलर’ की पहचान में लगे लोगों के लिए हर्ष का विषय है| अगर आपको मेरी बात में ज़रा भी संदेह है तो मेरे नीचे लिखे इस वाक्यों को अपने लक्ष्य के सामने दोहरायें और प्रत्युत्तर में इन वाक्यों के सामने लिखे जवाबों से मिलता-जुलता जवाब करीब करीब 60% मिले तो बधाई!!!! आपने अपने जीवन का पहला सेक्यूलर पहचान लिया है!!!!

·         मोदी एक अच्छा प्रशासक है – मोदी को अमेरिका का वीसा नहीं मिला
·         मोदी के कार्यकाल में गुजरात की उन्नति राष्ट्रीय स्तर से कहीं अधिक हुई है - मोदी को अमेरिका का वीसा नहीं मिला
·         मोदी ने राज्य में औद्योगिक प्रगति के लिए एक अच्छा वातावरण तैयार किया है - मोदी को अमेरिका का वीसा नहीं मिला
·         मोदी सबकी उन्नति में विशवास करते न की तुष्टिकरण में - मोदी को अमेरिका का वीसा नहीं मिला
·         मोदी के कार्यकाल में सर्वाधिक सड़कों का उच्च स्तारिय निर्माण हुआ है - मोदी को अमेरिका का वीसा नहीं मिला
·         मोदी आज तक के सबसे अच्छे प्रधान मंत्री साबित हो सकते है - मोदी को अमेरिका का वीसा नहीं मिला

आप को जल्दी ही एहसास होगा की आप ‘मोदी’ शब्द का पूरा उच्चारण भी नहीं कर पायेंगे की उसके पहले ये सच्चे सेक्यूलर आपको रोक देंगे और मोदी से गुजरात दंगों के बारे में माफ़ी माँगने का कहेंगे|  अगर आपको उचित लगे तो पूछ सकते है की भला किस अपराध के लिए? लिए लेकिन आप निश्चिंत रहिये क्योंकि ‘सेक्यूलर्स’ को यह भी पता नहीं होता है की वे मोदी को किस अपराध से जोड़ना चाहते है| एक सच्चा सेक्यूलर मोदी को हर आने वाले क्षण में फांसी पर टंगा देखना चाहता है| उस अनजाने अपराध के लिए जो उनकी नजरों में इस धरती का अब तक का सबसे जघन्य अपराध है| हाँ एक बात और, यह मोदी नाम से भड़कने वाले सेक्यूलर्स सांसदों के जाली हस्ताक्षरों से दूसरे देशों के प्रधानों को पत्र लिखने में महारत रखते है|

हर सेक्यूलर घजनी के आमीर खान जैसा होता है| उनकी याददाश्त 2002 के दंगो के पहले और उसके बाद की पूरी तरह मिट चुकी होती है| एक सच्चा सेक्यूलर सन 2002 और गुजरात के दंगे अच्छे से याद रखता है| लेकिन गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस को वह भूल चूका होता है| हालाँकि आपको 1992 के बाबरी मस्जिद को याद रखने वाले भी मिल जायेंगे| एक सच्चा सेक्यूलर भगवद गीता को पढ़ना साम्प्रदायिक मानता है और इतना की अगर कोई गीता को स्कूल के पाठ्यक्रम में शामिल करने की बात करे तो मरने-मारने पर उतारू हो जाता है| लेकिन ‘राहुल गांधी’ पर एक निबंध के पाठ्यक्रम में समावेश पर उसे कोई आपत्ति नहीं होती है| एक मिनिट; ये शुध्ध सेक्यूलर नहीं बल्कि ‘चापलूस- सेक्यूलर’ नामक उप-प्रजाति के होते है| हिन्दू और भगवद गीता के प्रति घृणा के साथ ही साथ इनका मुस्लिम-टोपी (Skull-Cap) के प्रति अगाध प्रेम देखने लायक होता है| सेक्यूलर के लिए मुस्लिम-टोपी सेक्यूलारिस्म का एक बहुत ही महत्वपूर्ण और अत्यंतावश्यक प्रतीक होता है| अगर किसी सेक्यूलर को मौक़ा मिले तो मुस्लिम-टोपी को संवैधानिक दर्जा देकर हर देशवासी को पहनना अनिवार्य करवा दे सकता है| तो अगर आप किसी सेक्यूलर तो मुस्लिम-टोपी पहना देखें तो आश्चर्यचकित होने की आवश्यकता नहीं|

एक सेक्यूलर आतंकवाद का प्रगाढ़ प्रशंसक होता है बशर्ते की आतंकवाद किसी समुदाय विशेष द्वारा किया जा रहा हो| अगर हमारे न्यायालय किसी समुदाय विशेष के लोगों को दोषी करार दें तो ऐसे न्यायालय सेक्यूलर के लिए सिर्फ एक मजाक होता है क्योंकि यह सेक्यूलर की भावना के विपरीत होता है| किसी आतंकवादी की धरपकड़ अथवा मौत को मनगढंत कहानियों के सहारे एक जाली मुठभेड़ साबित करने के लिए एक सेक्यूलर अपना सारा जीवन दांव पर लगाने तो तत्पर रहता है| बटला हॉउस, एहसान जाफरी और इशरत जहां जैसे शब्द एक सेक्यूलर लिए बहुत ही पवित्र होते है| एक सेक्यूलर नियमित रूप से आजमगढ़ जरूर जाता है और उन निर्दोषों को और उनके परिवार मुहल्लेवालों को एक काल्पनिक न्याय दिलवाने का वादा करता है| ‘मोदी’ शब्द की तरह ही मैं कुछ और सवाल नीचे लिख रहा हूँ जो की सेक्यूलर को पहचानने में आपकी उसी तरह से मदद करेंगे:

·         26/11 के आतंकी हमले में 200 से ज्यादा लोग मारे गए – इसमें RSS का हाथ है
·         IM को हम ख़त्म क्यों नहीं कर पा रहे है - इसमें RSS का हाथ है
·         आतंकियों की मुठभेड़ मैं मौत पर हम इतना क्यों चिल्ला रहे है - इसमें RSS का हाथ है
·         आतंकियों और उनके परिवार वालों से हम इतनी सहानुभूति क्यों दिखाएँ - इसमें RSS का हाथ है

अगर सेक्यूलर कोई पत्रकार हुआ तो उसकी पहचान और भी आसान होगी क्योंकि आप उसे वृहद दृष्टिकोण से विश्लेषण करता पायेंगे| इतनी वृहद् की किसी आम आदमी को स्वयं सोच पहाड़ के सामने राई जैसी लगे| एक सेक्यूलर पत्रकार आपको अहमदाबाद की गलियों की ख़ाक छानता मिल जाएगा / जाएगी खासकर जुहापुरा और उसके जैसी जगहों की| वहां पर वो 2002 के दंगों के दौरान हुइ ( वास्तविक और काल्पनिक दोनों) घटनाओं के बारे में documentry बनाता मिलेगा / मिलेगी| सेक्यूलर पत्रकार को भी सामान्य सेक्यूलर की तरह ही घज़नी वाली बिमारी होती है और उसे 2002 के दंगों के पहले या बाद का कुछ भी याद नहीं रहता| वह आपको दुनिया की हर छोटो बड़ी असफलताओं को मोदी के लिए एक बड़ा झटका साबित करता दिखाई अथवा सुनाई देगा| तो सेक्यूलर पत्रकार की एक और पहचान – उसे आप हमेशा उस छोटी बड़ी चीज की तलाश में पायेंगे जिसे की वो मोदी के लिए ‘झटका’ साबित कर सकने की उम्मीद रखे| और हां इन सेक्यूलर पत्रकार को ‘भगवा आतंकवाद’ में विशेष रूचि होती है|


और अब सबसे महत्वपूर्ण बात: एक सच्चा सेक्यूलर आपको लाल किले की प्राचीर से “अल्पसंख्यकों का इस देश के संसाधनों पर पहला अधिकार है” कहता हुआ मिलेगा| और अंत में जाते जाते एक चीज जो सेक्यूलरों को बहुत अच्छी लगती वो उनके राजकुमार के द्वारा झोपड़ी में बिताई एक रात| जो भी हो स्क्यूलर की पहचान करने वालों को मेरी शुभकामनाएं और हाँ जब जब कभी सेक्यूलर की पहचान हो मुझे याद करना मत भूलना|